Uvasagharam Stotra - Uvasagharam Stotra
![]() | Tento článek má několik problémů. Prosím pomozte vylepši to nebo diskutovat o těchto otázkách na internetu diskusní stránka. (Zjistěte, jak a kdy tyto zprávy ze šablony odebrat) (Zjistěte, jak a kdy odstranit tuto zprávu šablony)
|
Uvasagharam Stotra | |
---|---|
Informace | |
Náboženství | Džinismus |
Autor | Bhadrabahu |
Doba | 2. až 4. století n. L |
Část série na |
Džinismus |
---|
![]() |
Jainovy modlitby |
Hlavní sekty |
![]() |
Uvasaggaharam Stotra je adorací dvacátého třetího Tīirthankara Paršvanatha. Tuto Stotru složil Acharya Bhadrabahu který žil kolem 2. – 4. století n. l. Předpokládá se, že eliminuje překážky, strádání a utrpení, pokud jsou zpívány s úplnou vírou. Je široce recitován v komunitě Jain.
„श्रीभद्रबाहुप्रसादात् एष योग: पफलतु“
उवसग्गहरं पासं, पासं वंदामि कम्मघण-मुक्कं
विसहर-विस-निन्नासं मंगल कल्लाण आवासं ।१।
अर्थ-प्रगाढ़ कर्म-समूह से सर्वथा मुक्त, विषधरो के विष को नाश करने वाले, मंगल और कल्याण के आवास तथा उपसर्गों को ह हह वव हव ववलव
विसहर-फुल्लिंगमंतं कंठे धारेइ जो सया मणुओ
तस्स गह रोग मारी, दुट्ठ जरा जंति उवसामं ।२।
अर्थ-विष हरने वाले इस मंत्रारूपी स्पुफलिंग (ज्योतिपुंज) को जो मनुष्य सदैव अपने कंठ में धारण करता है, उस व्यक्ति के दुष्ट ग्रह, ोगोग बीम बीम बीम बीम बीम बीम ी ी ी ी
चिट्ठउ दूरे मंतो, तुज्झ पणामो वि बहुफलो होइ
तिर तिरियेसु वि जीवा, पावंति न दुक्ख-दोगच्चं ।३।
थर्थ-हे भगवन्! इसे इस विषहर मंत्रा की बात तो दूर रहे, मात्रा आपको प्रणाम करना भी बहुत फल देने वाला होता है। मनुषे मनुष्य और तिर्यंच गतियों में रहने वाले जीव भी दु: ख और दुर्गति को प्राप्त नहीं करते हैं।
तुह सम्मत्ते लद्धे चिंतामणि कप्प-पायव-ब्भहिए
पावंति अविग्घेणं जीवा अयरामरं ठाणं ।४।
अर्थ-वे व्यक्ति आपको भलिभाँति प्राप्त करने पर, मानो चिंतामणि और कल्पवृक्ष को पा लेते हैं, और वे जीव बिना किसी विघ्न के अजर, अमर पद, ,्,
इह संथुओ महायस भत्तिब्भरेण हिअएण
दा देव! दिज्ज बोहिं, भवे-भवे पास जिणचंदं ।५।
थर्थ-हे महान् यशस्वी! मैं इस लोक में भक्ति से भरे हुए हृदय से आपकी स्तुति करता हूँ। दे देव! जिनचन्द्र पार्श्वनाथ! आप मुझे प्रत्येक भव में बोधि (रत्नत्रय) प्रदान करें।
ओं अमरतरु-कामधेणु-चिंतामणि-कामवुंफभमादिया।
ॐ, अमरतरु, कामधेणु, चिंतामणि, कामकुंभमादिया
सिरि पासणाह सेवाग्गहणे सव्वे वि दासत्तं ।६।
अर्थ-श्री पार्श्वनाथ भगवान् की सेवा ग्रहण कर लेने पर ओम्, कल्पवृक्ष, कामधेनु, चिंतामणि रत्न, इच्छापूर्ति करने वाला कलश आदि सभी सुखप्रदाता कारण उस व्यक्ति के दासत्व को प्राप्त हो जाते हैं.
उवसग्गहरं त्थोत्तं कादूणं जेण संघ कल्लाणं
करुणायरेण विहिदं स भद्दबाहु गुरु जयदु ।७।
अर्थ-जिन करुणाकर आचार्य भद्रबाहु के द्वारा संघ के कल्याणकारक यह „उपसर्गहर स्तोत्र“ निर्मित किया गया है, वे गुरु भद्रबाहु सद्रबाहु
Viz také
- Bhadrabahu
- Padmavati (džinismus)
- Dharanendra
- Shree Uvasaggahar Stotra Význam
- Video Shree Uvasaggahar Stotra
- Knihy Shree Uvasaggahar Stotra